Tulsi vivah ki पौराणिक कहानी : हर साल कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन तुलसी विवाह मनाया जाता है। इस साल में तुलसी विवाह 26 नवंबर को मनाया जाएगा। तो जानते है इसकी पौराणिक कथा के बारे मे।
Tulsi Vivah का उत्तम पर्व मुख्य रूप से हिन्दू धर्म में भावपूर्व से मनाया जाता है। इस दिन हिन्दू धर्म के लोग पुरे रीति-रिवाज के साथ भगवान शालिग्राम और माता तुलसी का विवाह करवाते है। लोगों में इसे मान्यता भी है की ये विवाह करने से न केवल माता तुलसी का लेकिन साथ में भगवान विष्णु का भी आशीर्वाद मिलता है।
हिन्दू धर्म में तुलसी विवाह का महत्व
यह दिन भगवान विष्णु अपने 4 महीने की निद्रा से जागते है। इस दिन लोगों भगवान विष्णु के अवतार शालिग्राम से माता तुलसी का विवाह करवाते है। हमारे यहाँ हिन्दू धर्म में लोग अपने घरों में ही तुलसी माता का पौधा रखते है और पूरे रीति-रिवाज से उनका विवाह करते है
जब पुरे भारत में यह विवाह संपन्न होता है उसके बाद से ही लोग शुभ काम करना शुरू करते है। हिन्दू धर्म में बेटियों की शादी तुलसी विवाह होने के बाद ही शुरू करते है। जिन लोगों के पास बेटियां नहीं होती वो लोग इस तुलसी विवाह में माता तुलसी का कन्यादान करके पुण्य की प्राप्ति करते है।
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Tulsi Vivah से जुड़ी पौराणिक कथा
आप लोगो को माता तुलसी का असली नाम मालूम नहीं होगा, माता तुलसी को पहले वृंदा के नाम से जानते थे। माता का जन्म राक्षस कुल में हुवा था लेकिन वो हम सबके प्रिय श्रीहरी विष्णु की परम भक़्त थी। जब वृंदा बड़ी हुयी तो उसका विवाह जलंधर जैसे असुर से करवा दिया था। वृंदा परम भक्त के साथ पतिव्रता स्त्री भी थी। वृंदा की यही भक्ति के कारण ही उसका पति और ताकतवर होता गया उसके चलते उसमे अभिमान की ज्वाला और बढ़ने लगी। यह अभिमान के चलते उसने स्वर्ग पर आक्रमण कर देव देवियों के अधिकार छीन लिए। सभी देव देवियों इस असुर से परेशान होकर भगवान विष्णु के पास इसका हल करने के लिए गए। लेकिन इस असुर का अंत करने के लिए उसकी पत्नी वृंदा का सतीत्व भंग करना जरुरी था।
यह सब त्राहिमाम की वजह से भगवान विष्णु ने जलंधर का रूप लिया और वृंदा के पतिधर्म को समाप्त किया। इसके बाद जलंधर की शक्तिया कम होने लगी और एक युद्ध के दौरान इसकी मृत्य हुयी। यह सब छल का जब वृंदा को मालूम पड़ा तो वो भगवान विष्णु पे क्रोधित हुयी और कहा की मेने आपकी इतनी सेवा की है और आप ने मेरे साथ एइसा किया। क्रोधीय अवस्थामे वृंदा में विष्णु भगवान को श्राप दे दिया की आप पाषाण बन जाएं। लेकिन इसकी वजह से पूरी दुनिया का संतुलन बिगड़ने लगा और लोगों त्राहिमाम होने लगे।
यह सब देखके सभी देवी-देवता वृंदा के पास आते है और उसको समझने की कोशिश करते है। बाद में वृंदा को अपने भूल का अहसास हुआ और वो विष्णु भगवान को श्राप से मुक्त करती है लेकिन वृंदा उससे खुश नहीं होती है और वो भी अपने पति के साथ सती हो जाती है। लेकिन तब वृंदा की राख से एक पौधा निकलता है जिसको प्रभु तुलसी का नाम देते है और साथ में यह भी कहते है की में अभी से तुलसी के बिना प्रसाद ग्रहण नहीं करूँगा। तद उपरांत यह भी कहाँ की अब से मेरे इस शालिग्राम रूप के साथ तुलसी का विवाह होगा और युगो युगो तक लोग इस एकादशी को तुलसी विवाह करके सुख और सौभाग्य की प्राप्ति करेंगे।
Tulsi Vivah की पूजा
इस दिन आपको सूर्योदय से पहले उठकर आपकी नित्य क्रिया से दूर होकर सुबह स्नान और साफ-सुथरे वस्त्र धारण करिये। उसके बाद आपको माता तुलसी को लाल चुनरी चढ़ानी है और उसका श्रृंगार करके सभी वस्तु अर्पित करनी है। यह सब करने के बाद प्रभु विष्णु के अवतार शालिग्राम जी की स्थापना उस पौधे में करनी है और पड़ित जी के द्वारा पुरे रीती-रिवाज़ के साथ यह विवाह सम्पन करने है। इस विवाह में पुरुष को हाथ में शालिग्राम जी और स्त्री को माता तुलसी जी को हाथ में लेकर अग्नि के साथ फेरे लेने चाहिए। जब यह विवाह पूरी तरह सम्पन हो जाये तो उसके बाद माता तुलसी जी की आरती अवश्य करनी चाहिए।